वसंत पंचमी : विद्यादायिनी
पुस्तक धारण करनेवाली,
तुम ज्ञान सुधा बरसाने वाली।
अधरों पर मुस्कान तुम्हारी,
मन का तिमिर मिटाने वाली।
नीर सुधा की धारा पर बैठी,
विद्या की सरिता बहाने वाली।
शुभ्र कमल संग हंस सवारी उज्जवल कर्पूर को लजाने वाली।
विद्यादायिनी वीना वादिनी,
चहूँ ओर प्रकाश बिखराने वाली।
कर में कमण्डल कमल सुसोभित,
श्वेत वस्त्र धारण करने वाली।
बुद्धि बनकर सब के साथ,
पग-पग पर साथ निभाने वाली।
मैं मूढ़ अति अज्ञानी माता,
करो दया मुझ पर मेरा तुमसे है पुत्र सा नाता।
तेरे “मंजु “ गान से जग मोहित है जैसे,
मुझे भी सिखा दो बस एक राग वैसे।
तुमने जग को है बांधा जैसे एक डोर में,
मैं भी अपनों को बाँध लूँ प्रेम के आग़ोश में।
तेरे श्वेत वस्त्र में हैं सात रंगों के मेले,
तेरे हाथों में सोभते हैं ज्ञान के ख़ज़ाने।
तुम्हें भाते हैं अबीर-गुलाल,
तेरे तान से खिलते वसंत के फूल सारे।
तुम्हें पूजते हैं आम – मँजरी से,
पीत-कुसुम भरकर अंजलि से।
तुमसे है वसंत का आगमन,
पुष्पित पल्लवित है जग का आँगन।
पीले सुनहले किरणों से सब मदमस्त हैं,
करते भौंरे भी गुँजन।
मुझ पर भी दे दो ध्यान,
चाहिए ज्ञान प्रकाश का एक किरण,
अंधकार मिटा दो,
सफ़ल कर दो मेरा जीवन।
मेरा भी एक नाम हो जग में,
कुछ तो ऐसा पाठ पढ़ा दो।
जीवन के कठिन परीक्षा में,
मुझको भी उतीर्ण करा दो।
मुझे कुसुम -से महका दो,
कोई तो सू- उपाधि दिला दो।
दे दो कुछ तो उपहार मुझे,
या तो अपना बस शिष्या बना लो,
कुछ तो मुझ पर दया दिखा दो।
~ Manjusha Jha
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