समय
साल तो बदल गया, समय बदलेगा कब?
जीवन में खुशियां विखराएगा कब?
स्वच्छंद, अंतर्मन से हंसी आएगी कब?
साल दर साल बदल गया, कितने हीं वसंत बीत गया।
मन के खुशियों के, फब्बारे फूटेंगे कब?
ओठों पर चंचल मुस्कान, दिख पायेंगे कब?
साल तो बदल गया, समय बदलेगा कब?
मन ये मृगतृष्णा में भटके,
आशा के नन्हे किरण के सहारे,
जीवन के पल – पल को निहारे,
बच्चे हैं आँखों के तारे,
उन्हीं से अपना जीवन सारा,
उनपे लुटा दूं हर पल वारा।
समय बदलेगा ज़रूर!!!!! ये आशा ही है जीवन का सहारा।
दामन भी भरेगा, एक दिन खुशियों से, कुछ साल और बदल जायेगा जब।
साल बदल गया, तो समय भी बदलेगा ज़रूर।
खुशियों का ख़ज़ाना तो जीवन के संग – संग ही है,
पर , जीवन जीने का सलीका, ना सीख पाया जमाने से,
मन में बस यही तंज है।
समय के आने पर हीं जैसे,
खिलते हैं तो तरुवर में फूल,
अपनों के आने से मिलते दिल में सुकून,
कहना मेरी मानो, मैं हूं मेरे घर का मूल।
~ Manjusha Jha
Subscribe to these poems on Telegram - t.me/manjushapoems