पंछी
कहीं दूर से उरकर
फुदक-फुदक कर आती है
बैठकर मुँडेर पर
ईधर उधर बस झाँकती है
फिर देती आवाज़ मुझे
कहती रहती है
कुछ चहक़-चहक कर
नन्ही सी, प्यारी है वह
दिखती बड़ी न्यारी है वह
ना जाने क्या नाम है उसका?
शायद वो गोरैया है!!
पंछी बहुत हीं प्यारी है,
शुबह सबसे पहले आती है,
मुझसे मिलकर ,खुश हो जाती है।
फिर उरकर कहीं वो,
दूसरे को भी जगाकर आती है।
चावल चुगती है बड़े चाव से,
गालों में भरती है सतर्क भाव से,
तब फिर चहकती है बरे ताव से,
चहक- चहक कर फिर वो गाती है ऐसे,
लगता कुछ मिला हो छप्पर फाड़ कर जैसे।
मैं ये सारे देखा करती हूँ,
मंत्रमुग्ध निश्चल होकर
छुप- छुप कर पर्दे के ओट में जी भर।
मुझे देख कर वो डर ना जाए,
उर ना जाए फुर्र होकर।
आती कभी – कभी दुबारा,
बैठी हो जैसे सुस्ताकर।
पर मैं ना रुक पाती अब
मुझे काम याद आता है जब,
मैं भी उलझ जाती हूँ तब
जा कर अपनी दुनिया में ,भूल जाती हूँ सब।
फिर तो अगले शुबह हीं ,मिल पाती हूँ बस।।
~ Manjusha Jha
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