Poem: Women

स्त्री

अवर्णिया अडिग सिर्फ़ नारी हो तुम
प्रकृति की अनुपम कृति हो तुम

अद्भुत शक्ति से परिपूर्ण हो तुम
सारे गुणों से भरी ,खान हो तुम

अग्नि के प्रचंड लौ की शक्ति हो तुम

तुम बहुत ख़ास हो
सबकी आस हो तुम

कल -कल कर बहती नदियों की
प्रवाह हो तुम
जीवन डगर पर चलती
बस चलती हीं जाती हो तुम

जैसे पहाड़ों से सीखा हो
तुमने अडिग रहना

बिजली की गति से
चमकाती हर कोना

धरती से पा लिया
शांति का गुण

तभी तो धरा पर दिया
मानव का जन्म

धरती ने तो किया
पौधे का पालन पोषण

तुमने उससे भी ऊपर उठ कर
किया है तुमने मानव सं र क्छ्न

तुम धूप भी हो
तुम छाओं भी हो

धूप के विना पौधे होते नहीं
तुम्हारे विना घर ,घर लगते नहीं

धूप जिधर से गुजरे
फूल खिल जाते हैं

तुम जिधर से गुज़रो
धूल मिट जातें हैं

होती है रौनक़
हर घर में तुमसे

कभी माँ ,कभी बहन
कभी बेटी के रूप से

ग़ुस्से में भड़कती
पल में पिघलती हो तुम

कहाँ से लाती हो
इतना प्यार ?

हर दुत्कार भी
सहती हो तुम

अद्भुत अदम्य
साहसी हो तुम

अवर्निय अटल
कर्तव्य परायनी हो तुम

~ Manjusha Jha

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